पश्चिमी सूडान के जेबेल मर्रा पर्वतीय क्षेत्र में 31 अगस्त 2025 की रात लैंडस्लाइड ने एक बड़ा हादसा कर दिया। भारी बारिश के बाद हुए भूस्खलन में तारासिन गांव पूरी तरह मिट्टी में दब गया और शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, कम से कम 1000 लोगों की मौत हो गई है। गांव में सिर्फ एक व्यक्ति जिंदा मिला है। यह जानकारी सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी के नेतृत्वकर्ता अब्देलवाहिद मोहम्मद नूर ने दी है।
सूडान लैंडस्लाइड में बचाव और राहत अभियान
सूडान लैंडस्लाइड के बाद स्थानीय प्रशासन और सूडान लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से शवों को मलबे से निकालने और लोगों को आपात सहायता देने की अपील की है। तेज बारिश के चलते तारासिन गांव पूरी तरह जमीनदोज हो गया, जिसमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी शामिल हैं। राहत और बचाव अभियान मौसम और इलाके की खराब परिस्थितियों की वजह से बाधित है।
यह हादसा ऐसे समय में हुआ है जब सूडान पिछले दो साल से गृहयुद्ध के संकट से जूझ रहा है। मार्रा पर्वतीय क्षेत्र में सैकड़ों लोग पहले ही युद्ध से पलायन करके शरण ले रहे थे। अब सूडान लैंडस्लाइड के कारण राहत की स्थिति और बिगड़ गई है। खाने-पीने के सामान और दवा की कमी ने लोगों को मुश्किल में डाल दिया है।
क्षेत्रीय पृष्ठभूमि
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जेबेल मर्रा क्षेत्र दशकों से उपेक्षा, युद्ध व बुनियादी सुविधाओं की कमी का शिकार है। बारिश का मौसम अक्सर यहाँ आफत लेकर आता है।
- गृह युद्ध व राजनीतिक बिखराव से दारफुर की जनता लंबे समय से भुखमरी, विस्थापन व अमानवीय स्थिति झेलती रही है।
तारसिन गाँव दारफुर के उस हिस्से में है जिसे सूडान लिबरेशन मूवमेंट-अब्देल वाहिद अल-नूर (SLM-AW) का गुट नियंत्रित करता है। यहाँ सालों से बुनियादी ढांचे की भारी कमी रही है। रास्ते, अस्पताल, पीने का पानी, स्कूल – किसी चीज़ की गारंटी नहीं थी। हर साल बारिश के मौसम में यहाँ के लोगों को डर रहता था कि कहीं उनका घर मिट्टी में न मिल जाए। इस बार प्रकृति ने उनका सबसे बड़ा डर सच कर दिया।
सरकारी मशीनरी और राहत एजेंसियों की पहँच भी यहाँ बेहद सीमित है। इलाके में राजनीतिक तनाव है, जहां सूडान सरकार और रेपिड सपोर्ट फोर्सेस (RSF) की अनुमति के बिना कोई भी बाहरी एजेंसी पहुँचना मुश्किल है। RSF इस क्षेत्र के छः में से आठ ब्लॉक पर नियंत्रण रखती है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियाँ और संयुक्त राष्ट्र की टीमें यहाँ फंसी हुई आबादी तक नहीं पहुँच पा रही हैं।
मानवीय संकट और अंतरराष्ट्रीय गुहार
एसएलएम-एडब्ल्यू के नेतृत्व ने एक बयान जारी कर दुनियाभर के मानवाधिकार व राहत संगठनों और संयुक्त राष्ट्र से मदद की अपील की है। उन्होंने कहा कि मलबे में दबे शवों को निकालने के लिए भारी मशीनरी और विशेषज्ञों की जरूरत है। आसपास के गांवों में भी लोग भयभीत होकर पलायन कर रहे हैं, क्योंकि भारी बारिश अब भी जारी है।
साथ ही यहां मानवीय संकट और गहरा हो गया है – भूख, दवाइयों की कमी, गर्म कपड़ों का अभाव और पानी के स्रोत नष्ट हो चुके हैं। जिन लोगों ने अपने परिजनों को खो दिया है, वे सदमे में हैं और उन्हें मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और स्वास्थ्य सहायता की बेहद जरूरत है।
दारफुर सूडान के अफ्रीका के उस हिस्से में आता है, जो पिछले बीस सालों से गृहयुद्ध, जातीय संघर्ष और सरकार की उपेक्षा से जूझ रहा है। जेबेल मर्रा पर्वतीय क्षेत्र कई बार विद्रोही गुटों का गढ़ रहा है। सरकार और विद्रोहियों के बीच संघर्ष ने यहाँ की बुनियादी सेवाओं को लगभग समाप्त कर दिया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई जैसी चीज़ें यहाँ के वासियों के लिए सपना बनी हुई हैं।
इसके अलावा, लंबे समय से लगातार सूखा, अकाल और दूसरी प्राकृतिक आपदाएं भी इस क्षेत्र के लिए आम हैं। ऐसी स्थिति में बाढ़ और भूस्खलन स्थानीय लोगों के लिए जानलेवा बन जाते हैं।
भूस्खलन के बाद स्थानीय लोग, सैनिक और कुछ एनजीओ के कार्यकर्ता तुरंत बचाव कार्य में जुट गए थे। लेकिन उनके पास न भारी मशीनें थीं, न पर्याप्त संसाधन। सरकारी प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को यहां आने के लिए RSF की अनुमति की जरूरत पड़ती है। यह अनुमति मिलना जटिल प्रक्रिया है क्योंकि क्षेत्र में तनाव और अविश्वास बना हुआ है।
अधिकारियों ने हालात का जायजा लेकर विश्व समुदाय से गुहार लगाई है कि वे यहाँ राहत कार्यों को शुरू करने के लिए सूडान सरकार और RSF पर दबाव बनाएं। मलबे की सफाई और शवों की तलाश के लिए आवश्यक भारी मशीनरी व टीमों की महती आवश्यकता है।
भविष्य की चुनौतियाँ और ज़रूरी कदम
तारसिन गाँव की त्रासदी अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे दर्दनाक प्राकृतिक आपदाओं में शुमार की जा रही है। इसने साफ कर दिया कि जेबेल मर्रा जैसे संवेदनशील इलाकों में टिकाऊ और सुरक्षित बुनियादी ढाँचे की जरूरत है। बाढ़, भूस्खलन, सूखा – इन सभी आपदाओं से बचाव के लिए स्थानीय प्रशासन, अंतरराष्ट्रीय समाज और राजनीतिक गुटों को मिलकर काम करना होगा।
इसके लिए राहत शिविर, मेडिकल टीम, मनोवैज्ञानिक सहायता, बच्चों के लिए विशेष देखरेख, पानी-खाद्य सप्लाई को प्राथमिकता देनी होगी। सबसे बड़ी चुनौती मलबे में दफन शवों को निकालने की है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारी बेहद जरूरी है।