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ओवैसी की राजनीति: बिहार में मुसलमानों के वोटों की ‘विभाजन कथा’ – 32 सीटें नहीं, मुसलमानों के वोट की 32 कब्रें हैं

ओवैसी की राजनीति पर मानवाधिकार कार्यकर्ता शमीम अहमद का तीखा बयान—उन्होंने कहा कि ओवैसी मुसलमानों के वोट बाँटकर बीजेपी को मज़बूत कर रहे हैं। बिहार चुनाव 2025 में AIMIM की रणनीति पर यह गहरी और बेबाक बातचीत ज़रूर पढ़ें।

कलम टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क |12 अक्टूबर 2025 | पटना

ओवैसी और बिहार की सियासत पर शमीम अहमद का हमला

विधानसभा चुनाव से पहले जब सभी दल अपनी रणनीति तय करने में व्यस्त हैं, कलम टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क ने हालात की नब्ज़ समझने के लिए वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता शमीम अहमद से एक गंभीर और खुली बातचीत की।

शमीम अहमद पिछले पच्चीस सालों से इंसाफ़, मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों की आवाज़ बनकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा — जिस बात का डर था, वही हुआ। ओवैसी एक बार फिर मुसलमानों के वोट तोड़ने और बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने के मिशन पर उतर आए हैं। यह व्यक्ति मुसलमानों का नेता नहीं, बीजेपी का गुप्त सिपाही है।”

ओवैसी मुसलमानों के वोट की कब्र खोद रहे हैं, बिहार में 32 सीटें नहीं, मुसलमानों के वोट की 32 कब्रें हैं

ओवैसी

शमीम अहमद कोई आम विश्लेषक नहीं। उन्होंने सियासत के हर रंग देखे हैं — सत्ता का दंभ भी और बेबसों की चीखें भी। उनका कहना था कि ओवैसी अब मुसलमानों के अंदर से उठे हुए दुश्मन बन चुके हैं। उन्होंने कहा, “AIMIM ने बिहार के 16 ज़िलों की 32 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। यह ऐलान किशनगंज से किया गया, पटना से नहीं। क्यों? क्योंकि जहाँ मुसलमानों के वोट ज़्यादा हैं, वहाँ उनके जज़्बात से खेलना आसान है। यह 32 सीटों की सूची नहीं, बल्कि मुसलमानों के वोटों की ‘कब्रनुमा फेहरिस्त’ है।”

2020 की कहानी फिर दोहराई जा रही है

शमीम अहमद ने कहा, “2020 के चुनाव में AIMIM ने पाँच सीटें जीतीं और बीजेपी ने पचास। अगर ओवैसी उन इलाकों में उम्मीदवार न उतारते तो आज बिहार में महागठबंधन की सरकार होती। ओवैसी का मक़सद जीतना नहीं, बल्कि दूसरों को हरवाना है।”

उन्होंने साफ़ कहा कि यह एक “प्लान्ड गेम” है — ओवैसी मुसलमानों के वोट बाँटकर बीजेपी के काम को आसान बनाते हैं। जब ओवैसी “मुस्लिम हित” की बात करते हैं, तो अगले दिन मोदी “हिंदू हित” का नारा लगाकर चुनावी हवा अपने पक्ष में कर लेते हैं।

“ओवैसी की हर स्पीच बीजेपी के लिए ऑक्सीजन”

शमीम अहमद बोले, “ओवैसी जब मुस्लिम हित की बात करते हैं, तो अगले दिन मोदी हिंदू हित का नारा लगाकर वोट बटोर लेते हैं। ओवैसी बीजेपी की राजनीति को ऑक्सीजन देते हैं।”

ओवैसी का मक़सद सेक्युलर ताकतों को कमज़ोर करना है”

जब उनसे पूछा गया कि ओवैसी तो खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताते हैं, शमीम अहमद ने कहा,
“यही सबसे बड़ा छल है। अगर वो सच्चे मुसलमानों के लीडर होते, तो INDIA गठबंधन से बात करते, सीट शेयरिंग करते, मुसलमानों का प्रतिनिधित्व मजबूत हो। लेकिन ओवैसी ऐसा नहीं करते, क्योंकि उनका मक़सद जीतना नहीं, दूसरों को हरवाना है। और इसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को होता है।”

अलग मुस्लिम पार्टी बनाना एक खतरनाक भ्रम है”

शमीम अहमद ने कहा कि भारत जैसी बहुसंख्यक लोकतंत्र में मुसलमानों की बقا सिर्फ़ सेक्युलर राजनीति में है, अलगाव में नहीं। उन्होंने कहा,
“जो मुसलमान यह सोचते हैं कि वे अपनी पार्टी बनाकर सफल हो जाएंगे, वो अपनी सियासी कब्र खुद खोद रहे हैं।”

हैदराबाद का सच और बिहार की हकीकत

उन्होंने कहा कि ओवैसी अपने राज्य तेलंगाना में उतने उम्मीदवार नहीं उतारते जितने बिहार में। क्योंकि वहाँ उनके निजी हित हैं। उन्होंने तीखे लहजे में कहा,“हैदराबाद की गलियाँ आज भी गंदी हैं, बेरोज़गारी वहीं है, गरीबी वैसी ही। लेकिन ओवैसी परिवार के ट्रस्ट, कॉलेज और अस्पताल खूब फल-फूल रहे हैं। यही है उनका ‘मुस्लिम हित’— खुद अमीर, कौम ग़रीब।”

अगर बिहार के मुसलमान अब भी नहीं जागे…”

उन्होंने चेतावनी दी,
“अगर बिहार के मुसलमान अब भी नहीं जागे तो उनका हाल उत्तर प्रदेश से भी बुरा होगा। ओवैसी अपनी राजनीति का खेल खेलकर चले जाएंगे, मगर बिहार के मुसलमान बीजेपी की संभावित सरकार में बुलडोज़र के नीचे होंगे। तब ओवैसी कहीं नहीं दिखेंगे।”

अंतिम चेतावनी: होश से वोट दो, वरना इतिहास माफ़ नहीं करेगा

अंत में शमीम अहमद ने कहा,
“मैं 25 साल से मानवाधिकार के क्षेत्र में हूँ। मैंने ज़ुल्म भी देखा और सियासत का धोखा भी। लेकिन ओवैसी की राजनीति सबसे ख़तरनाक छल है। मुसलमानों की सलामती सेक्युलर गठबंधन में है, अलगाव में नहीं।”

उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया :
“ये 32 सीटें चुनावी नहीं, बल्कि मुसलमानों की समझदारी का इम्तेहान हैं। अगर आपने ओवैसी जैसे लोगों को वोट दिया, तो याद रखिए — आपने अपनी ही दीवार गिरा दी है।”

शमीम अहमद की यह बातचीत सिर्फ़ बिहार के मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है — सियासत को धर्म से अलग रखो, वरना इतिहास बहुत सख्त फैसला देगा।

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