राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और हिंदी-उर्दू अकादमी के संरक्षक शमीम अहमद ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की शख्सियत आज भी शिक्षा, एकता और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है।
क़लम टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क
Patna | 11 नवम्बर 2025
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की शख्सियत आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक
मानवाधिकारों के सक्रिय कार्यकर्ता और हिंदी-उर्दू अकादमी के संरक्षक क़ायदे-उर्दू शमीम अहमद ने राष्ट्रीय शिक्षा दिवस और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के अवसर पर अपने विशेष बयान में कहा कि “मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की शख्सियत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी स्वतंत्रता संग्राम के दौर में थी।
उनका चिंतन आज भी हमें शिक्षा, एकता और जागरूकता की राह दिखाता है।”उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद का शिक्षा दर्शन केवल किताबों तक सीमित नहीं था। वे शिक्षा को मानवता, नैतिकता और राष्ट्रीय चेतना से जोड़कर देखते थे। उनके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य एक जागरूक नागरिक बनाना है, न कि केवल नौकरी का साधन।
शिक्षा और राष्ट्रीय चेतना का संदेश

शमीम अहमद ने कहा कि मौलाना आज़ाद का सबसे बड़ा योगदान शिक्षा के क्षेत्र में है। उन्होंने देश में सार्वजनिक शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद का मानना था —“शिक्षा वह रोशनी है जो अज्ञानता, विभाजन और असहिष्णुता के अंधेरे को मिटाती है।”
आज के समय में जब युवा वर्ग वैचारिक अस्थिरता और सामाजिक विभाजन के दौर से गुजर रहा है, मौलाना आज़ाद की शिक्षाएँ पहले से कहीं अधिक आवश्यक हैं।
राष्ट्रीय एकता और मुसलमानों की राजनीतिक परिपक्वता पर मौलाना की दृष्टि

शमीम अहमद ने मौलाना आज़ाद की राष्ट्रीय दृष्टि और सर्वधर्म समभाव की चर्चा करते हुए कहा कि “वे केवल मुसलमानों के नेता नहीं थे, बल्कि भारत की आत्मा के प्रवक्ता थे।”उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद ने स्वतंत्र भारत के मुसलमानों से जो संदेश दिया, वह आज भी दिशा दिखाता है — “कौम की प्रतिष्ठा राष्ट्र की सेवा से ही होती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि मौलाना की सोच आज के मुसलमानों के लिए राजनीतिक जागरूकता और राष्ट्रीय एकता का पाठ है।
मौलाना के विचार आज क्यों ज़रूरी हैं
शमीम अहमद ने कहा कि आज के दौर में जब समाज में संकीर्णता और धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है,
मौलाना आज़ाद की सहिष्णुता, नैतिकता और एकता का संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
उन्होंने कहा कि मौलाना का यह विश्वास —“कौम की बुलंदी शिक्षा से है और उसकी एकता उसके अस्तित्व की गारंटी” — आज भी हर भारतीय के लिए मार्गदर्शक है।
युवाओं के नाम अपील
अपने बयान के अंत में शमीम अहमद ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा दिवस केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर है। हमें देखना होगा कि क्या हमने मौलाना आज़ाद के सपनों के अनुसार शिक्षा, जागरूकता और इंसानियत की राह अपनाई है या नहीं।उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे मौलाना आज़ाद के विचारों को केवल किताबों तक सीमित न रखें,बल्कि उन्हें अपनी सोच, अपने व्यवहार और अपने समाज का हिस्सा बनाएं।“अगर हम मौलाना आज़ाद की शिक्षाओं पर अमल करें, तो न केवल मुसलमान समाज, बल्कि पूरा भारत बौद्धिक और नैतिक रूप से एक नए प्रबुद्ध युग में प्रवेश कर सकता है।”






