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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: एक बहुआयामी व्यक्तित्व: प्रोफेसर मोहम्मद एहसान बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर हुआ विशेष शैक्षणिक व साहित्यिक आयोजन

बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर आयोजित विशेष गोष्ठी में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के बहुआयामी व्यक्तित्व पर विस्तृत चर्चा हुई। प्रो. मोहम्मद एहसान ने उनके शैक्षणिक, धार्मिक, राजनीतिक और साहित्यिक योगदान को युगनिर्माण की दृष्टि से रेखांकित किया।

Qalam Times News Network | मधेपुरा | 11 नवम्बर 2025

बहुआयामी व्यक्तित्व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती और राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर 11 नवम्बर 2025 को बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के उर्दू विभाग के तत्वावधान में एक भव्य शैक्षणिक एवं साहित्यिक गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद एहसान ने की, जबकि मंच का संचालन विभाग के शिक्षक डॉ. सज्जाद अख्तर ने किया।
इस मौके पर विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों — उर्दू, इतिहास, हिंदी, राजनीति विज्ञान आदि — के शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे, जिससे सभागार खचाखच भरा हुआ था।

कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. सज्जाद अख्तर के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने अपने वक्तव्य में मौलाना आज़ाद के बहुआयामी व्यक्तित्व का विस्तृत परिचय देते हुए कहा कि आज़ाद के संपादित पत्र अल-हिलाल” और अल-बलाग” ने भारतीय समाज में राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना की नींव रखी।
उन्होंने बताया कि जब भारतीय जनता ब्रिटिश दमन और वैचारिक अंधकार में डूबी थी, तब मौलाना आज़ाद की लेखनी ने उसमें जागृति की ज्योति जगाई। उनके इन पत्रों ने न केवल शिक्षा और स्वराज्य के विचार को बल दिया, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को भी प्रतिष्ठित किया।
डॉ. अख्तर ने कहा कि मौलाना का लेखन आज भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि उन्होंने शब्दों के माध्यम से वह पुल बनाया जो धर्म, जाति और राजनीति की सीमाओं से परे मानवता की बात करता है।

शिक्षा के माध्यम से समाज निर्माण की दृष्टि

इतिहास विभाग के डॉ. अमरेंद्र कुमार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मौलाना आज़ाद केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि शिक्षा के गहरे चिंतक थे। उनका मानना था कि शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि मानवता की चेतना को जगाने की प्रक्रिया है।
उन्होंने कहा कि यह बहुआयामी व्यक्तित्व शिक्षा को व्यक्ति की आत्मा से जोड़ता था। मौलाना आज़ाद शिक्षा को स्वतंत्र चिंतन, नैतिक विकास और सामाजिक जागरूकता के तीन स्तंभों पर टिके एक जीवंत दर्शन के रूप में देखते थे।
उनका स्पष्ट मत था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि व्यक्ति को समाज में अपनी भूमिका को समझने और बेहतर नागरिक बनने के लिए तैयार करना है।

प्रो. मोहम्मद एहसान का अध्यक्षीय वक्तव्य: मौलाना आज़ाद – युगनिर्माता व्यक्तित्व

अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर मोहम्मद एहसान ने मौलाना आज़ाद के बहुआयामी व्यक्तित्व पर गहराई से चर्चा की। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद न केवल स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे, बल्कि स्वतंत्र भारत के बौद्धिक और वैचारिक निर्माण के भी प्रमुख शिल्पकार थे।

बहुआयामी व्यक्तित्व
प्रो. एहसान ने बताया कि मौलाना आज़ाद की राजनीतिक दृष्टि दूरगामी थी। वे धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है।
उन्होंने कहा— “मौलाना आज़ाद वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कलम और कर्म दोनों से देश को नई दिशा दी। उनकी सोच केवल आज़ादी पाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि आज़ादी को सार्थक बनाने के प्रयासों से जुड़ी थी।”

प्रो. एहसान ने आगे कहा कि मौलाना की रचनाएँ—चाहे वह “ग़ुबार-ए-ख़ातिर” हो या उनके भाषण—एक ऐसी बौद्धिक यात्रा हैं जिसमें गहरी धार्मिक अंतर्दृष्टि, भाषा का सौंदर्य और चिंतन की गहराई साथ-साथ मिलती है।
उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि मौलाना आज़ाद का जीवन हमें सत्य, निडरता, और ईमानदारी का संदेश देता है। अगर युवा पीढ़ी उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करे तो समाज में नैतिकता और ज्ञान का नया अध्याय खुल सकता है।

इस अवसर पर इतिहास विभाग के डॉ. शक्तिप्रसाद तिवारी, डॉ. खुशबू कुमारी, उर्दू विभाग के डॉ. मोहम्मद नसीम और कई शोधार्थियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
डॉ. तिवारी ने मौलाना की भूमिका को भारत की राष्ट्रीय चेतना के संदर्भ में बताया और कहा कि आज़ाद ने जो विचार शिक्षा और राजनीति दोनों में रखे, वे आज भी हमारी नीतियों में दिखाई देते हैं।
डॉ. खुशबू कुमारी ने मौलाना आज़ाद के महिला शिक्षा संबंधी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे उस दौर में भी स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।
डॉ. नसीम ने उनकी गद्य शैली, शब्द चयन और उर्दू भाषा के प्रति प्रेम की चर्चा की। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद ने उर्दू को न केवल साहित्य की भाषा, बल्कि विचार और चेतना का माध्यम बनाया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. शबनम परवीन ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इस गोष्ठी ने छात्रों को मौलाना आज़ाद के विचारों और व्यक्तित्व के और करीब लाया है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस तरह के शैक्षणिक आयोजन छात्रों के बौद्धिक विकास में अहम भूमिका निभाते हैं और नई पीढ़ी को अपनी वैचारिक धरोहर से जोड़े रखते हैं।

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