बिहार चुनाव 2025 में जातीय समीकरण का बड़ा असर दिखा। जानिए 2015 और 2020 की तुलना में इस बार भूमिहार, राजपूत, यादव, कुशवाहा, कुर्मी, ब्राह्मण और अन्य जातियों के कितने विधायक जीते।
इस बार मुस्लिम विधायक 11 ही पहुँच सके जबकि 2020 में ये संख्या 19 थी
Qalam Times News Network
Patna, 16.11.2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यहां की राजनीति में जातीय समीकरण सर्वोपरि है. NDA की बड़ी जीत के बाद अगले 5 साल किस जाति के विधायकों का दबदबा रहेगा? राजपूत 32, यादव 28, कुशवाहा 26, कुर्मी 25, भूमिहार 23, वैश्य 26, ब्राह्मण 14, मुस्लिम 11 पहुंचे हैं.
बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर टिकी रही है. ऐसे में हर वर्ग के मतदाता या वोटर्स यह जानने की कोशिश करते रहते हैं कि उनके जाति के कितने एमएएलए जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं?. साल 2015 और 2020 के मुकाबले इस बार कितने भूमिहार, राजपूत, कोइरी यानी कुशवाहा, कुर्मी, यादव और ब्राह्मण जातियों के कैंडिडेट जीतकर विधानसबा पहुंचे हैं? लेकिन एक जाति ने इस बार के चुनाव परिणाम में सबको चौंका दिया है. इस जाति का लंबे समय के बाद बिहार में अगले पांच साल तक दबदबा रह सकता है?
राजनीतिक पंडितों के लिए यह विश्लेषण जरूरी है कि इस जीत के बाद अगले 5 साल तक बिहार विधानसभा में किस जाति के विधायकों का नीति-निर्धारण में वर्चस्व रहेगा? बिहार की राजनीति में जातीय पहचान सबसे मजबूत आधार मानी जाती है और मंत्रिमंडल गठन के साथ-साथ अगले विधानसभा तक इसी जातीय समीकरण का असर दिखेगा. बता दें कि इस बार अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC के 65-75 एमएलए जीतकर आए हैं. कुशवाहा यानी कोइरी, तेली, मल्लाह, नाई, नुनिया जाति के विधायकों की संख्या सबसे अधिक है.
अगर बात पिछड़ा वर्ग की करें तो इस वर्ग से 55-65 विधायक चुनकर आए हैं. इसमें यादव, कुर्मी,वैश्यों की उपस्थिति मजबूत है. 2020 में विधानसभा में यादवों की संख्या 55 थी तो 2025 में उनकी संख्या घटकर सिर्फ 28 रह गई. 2015 में यादव 61 सीटों पर चुनाव जीते थे. ज्यादातर आऱजेडी के थे. लेकिन इस बार इनकी संक्या काफी कम हो गई है. बिहार चुनाव कुशवाहा और कुर्मी जाति के लिए यादगार रहा. 2020 में 10 कुर्मी विधायक थे, जो इस बार बढ़कर 25 हो गई है. वहीं, कुशवाहा 16 से बढ़कर इस बार 26 पहुंच गई है. वैश्य 22 से बढ़कर 26 तक पहुंच गए हैं.
इस बार अपर कास्ट यानी सामान्य वर्ग में सबसे मजबूत प्रदर्शन राजपूतों ने किया है. राजनीतिक दलों ने खासकर एनडीए ने सबसे ज्यादा राजपूतों को टिकट दिया था. 2020 चुनाव के चुनाव में राजपूत एमएलए की संख्या 18 थी, जो इस बार बढ़कर 32 सीटों तक पहुंच गई है. इस बार भूमिहार जाति के कैंडिडेट ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है. 2020 में जहां इस जाति के 17 विधायक थे, वहीं 2025 में भूमिहार जाति के 23 विधायक हो गए हैं. दोनों ही जातियों की सीटों में बढ़ोतरी से यह साफ है कि इस बार अपर कास्ट के वोटर्स ने एकजुट होकर वोट किया है
बिहार चुनाव 2015 में ब्राह्मणों की संख्या में कुछ ज्यादा इजाफा नहीं हुआ है. 2020 में 12 ब्राह्मण जीते थे तो इस बार 14 विधायक जीतकर आए हैं. कायस्थ जाति का हाल भी 2020 जैसा ही हुआ है. जहां 2020 में कायस्थ विधायक 3 थे तो वहीं 2025 में 2 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.
कुलमिलाकर अगर ओवर ऑल जातियों की बात करें तो अभी भी यादवों का बिहार विधानसभा में दबदबा रहेगा. क्योंकि इस बार भी राजपूत विधायक 32, यादव विधायक 28 जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. इसके बाद 26 वैश्य, 23 भूमिहार, इसके बाद 26 कुशवाहा, 25 कुर्मी, 14 ब्राह्मण और 2 कायस्थ विधायकों का नंबर आता है. इसके साथ ही ईबीसी यानी पिछड़ा वर्ग के 13, दलितों के अलग-अलग जातियों से 36 और 11 मुस्लिम विधायक सदन पहुंचे हैं.
कुलमिलाकर बिहार विधानसभा में अगले 5 वर्षों तक संख्यात्मक रूप से अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी का दबदबा बना रहेगा, जो नीतीश कुमार के राजनीतिक आधार का मुख्य स्तंभ है. ईबीसी और दलित वर्ग के विजेताओं की कुल संख्या 120 से अधिक होने का अनुमान है, जो विधानसभा में निर्णायक भूमिका में होंगे.






