पूर्वी चंपारण से राष्ट्रभाषा की माँग तेज़। कायदे-उर्दू शमीम अहमद ने हिंदी को राष्ट्रभाषा और उर्दू को द्वितीय राष्ट्रभाषा घोषित करने की अपील की। संगोष्ठी और मुशायरे में साहित्यकारों, नेताओं और शिक्षकों ने उर्दू-हिंदी की अहमियत पर ज़ोर दिया।
By Qalam Times News Network | चकिया (पूर्वी चंपारण), 29 सितम्बर 2025
राष्ट्रभाषा पर उठी ऐतिहासिक माँग
राष्ट्रभाषा को लेकर पूर्वी चंपारण की क्रांतिकारी धरती से एक नई आवाज़ बुलंद हुई। चकिया थाना क्षेत्र के ईमाद पट्टी गाँव में हिंदी-उर्दू अकादमी की ओर से भव्य संगोष्ठी और मुशायरे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कायदे-उर्दू शमीम अहमद ने की और संचालन उर्दू अनुवादक गुलाम रब्बानी मिस्बाही ने संभाला।
शमीम अहमद ने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाएँ भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। उन्होंने जोर देकर कहा—
“हम भारत सरकार से माँग करते हैं कि हिंदी को राष्ट्रभाषा और उर्दू को द्वितीय राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। अंग्रेजों ने भाषा को धर्म से जोड़कर नफ़रत फैलाने की साज़िश की थी, लेकिन अब समय है कि उस दाग को मिटाया जाए।”
संगठन का ऐलान : पुस्तकालय और आंदोलन
अकादमी के अध्यक्ष ने बताया कि संगठन जल्द ही हर इलाके में पुस्तकालय खोलेगा, जहाँ हिंदी, उर्दू और अन्य भाषाओं की किताबें उपलब्ध होंगी। उन्होंने कहा कि किताबें पढ़ने की परंपरा को ज़िंदा रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। साथ ही यह भी ऐलान किया कि चंपारण से राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरुआत की जाएगी ताकि हिंदी को राष्ट्रभाषा और उर्दू को द्वितीय राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल सके।
उर्दू की गिरती स्थिति पर चिंता
जदयू नेता मोहम्मद दलशाक ने कहा कि “हम अपने बच्चों को मिशनरी स्कूलों की शोभा बना रहे हैं, लेकिन उर्दू की तरफ ध्यान नहीं दे रहे। आज हालत यह है कि हम उर्दू अख़बार और पत्रिकाएँ भी नहीं खरीद पा रहे, जिसके कारण यह भाषा हाशिये पर जा रही है।”
फरोग आलम जामी ने भी अफसोस जताते हुए कहा कि “कई स्कूलों में उर्दू शिक्षक ही नहीं हैं। यहाँ तक कि ग्रामीण मिल्लत हाई स्कूल जैसे संस्थान, जो उर्दू स्कूल के नाम से जाने जाते हैं, वहाँ भी उर्दू अध्यापक का अभाव है।”
साहित्यकारों और नेताओं का समर्थन
कांग्रेस नेता शुजा गांधी ने कहा कि बिना उर्दू भाषा के हमारी संस्कृति अधूरी है। डॉ. वलीउल्लाह कादरी ने याद दिलाया कि “उर्दू के नेता शमीम अहमद एक अनमोल रत्न हैं। अमीर खुसरो को उर्दू-हिंदी का पहला कवि कहा जाता है। उन्होंने इसे हिंदवी भाषा कहा और इसी परंपरा ने हिंदी और उर्दू को एक धारा में जोड़ दिया।”
प्रोफेसर कलीम अहमद ने कहा कि भारतीय भाषाओं को बचाने के लिए बच्चों को शिक्षित और प्रशिक्षित करना सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है।
उर्दू सेल की पहल और भविष्य की दिशा
ज़िला उर्दू भाषा सेल के प्रभारी हैदर इमाम अंसारी ने बताया कि पूर्वी चंपारण उर्दू सेल ने कई स्कूलों में उर्दू की किताबें उपलब्ध कराई हैं और सार्वजनिक स्थानों पर उर्दू बोर्ड लगाए हैं। उन्होंने कहा कि—“अगर दिल से कोई काम किया जाए तो सफलता निश्चित है।”
मौलाना आदिल हुसैन मिस्बाही ने सुझाव दिया कि “उर्दू भाषा को ज़िंदा रखने के लिए हमें अपने बच्चों को इसकी शिक्षा देनी होगी और बातचीत में भी उर्दू का इस्तेमाल बढ़ाना होगा।”
मुशायरे की रोशन शाम
साहित्यिक सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार उज़ैर अंजुम ने की और संचालन आदित्य मानस ने किया।
मुशायरे में जफर हबीबी, रूह-उल-हक हमदम, समीउल्लाह चम्पारणी, सईद अहमद कादरी, डॉ. ताहिरुद्दीन ताहिर, वारिस इस्लाम पुरी, डॉ. सबा अख्तर शोख, हिदायतुल्लाह अहसन चम्पारणी, आकिब चिश्ती, मेहबूब शबनम मेहस्वी और मुजीब-उर-रहमान मुजीब ने अपनी शायरी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर मौलाना मंजर हुसैन रिजवी, मौलाना अली रज़ा, डॉ. अब्दुल रहमान, मुफ्ती रजाउल्लाह नक्शबंदी, मौलाना गुलाम हैदर, मौलाना कौसर रज़ा नूरी समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।