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गाज़ा में भूखमरी रोकने के 6 उपाय: इज़राइल पर काबू पाने के रास्ते

लेख: जैफ्री सैक्स और सिबिल फैरेस

हिंदी अनुवाद: फैसल

इज़राइल, अमेरिका की मिलीभगत से, गाज़ा में नरसंहार कर रहा है। यह नरसंहार वहां की जनता को भूखा रखकर,लोगों की हत्या करके और गाज़ा की बुनियादी ढांचे को नष्ट करके हो रहा है। इज़राइल यह गंदा काम करता है और अमेरिकी सरकार इसे वित्तीय मदद देती है और संयुक्त राष्ट्र में अपने वीटो अधिकार से कूटनीतिक ढाल प्रदान करती है। पैलेंटिर, लैवेंडर के माध्यम से, बड़े पैमाने पर हत्याओं को कुशलतापूर्वक अंजाम देने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मुहैया कराता है। माइक्रोसॉफ्ट अपने एज़्योर क्लाउड सेवाओं के जरिए, और गूगल व अमेज़न, निंबस पहल के माध्यम से, इज़राइली सेना के लिए मुख्य तकनीकी ढांचा प्रदान करते हैं।

यह 21वीं सदी के युद्ध अपराधों को इज़राइल-अमेरिका की सार्वजनिक-निजी साझेदारी के रूप में दर्शाता है। गाज़ा की जनता को इज़राइल द्वारा बड़े पैमाने पर भूखा रखने की पुष्टि संयुक्त राष्ट्र, एमेंस्टी इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, सेव द चिल्ड्रन और कई अन्य संस्थाओं ने की है। नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल और 100 अन्य संगठनों ने इज़राइल द्वारा खाद्य राहत को हथियार बनाने को रोकने की अपील की है। यह पहली बार है जब मध्य पूर्व में बड़े पैमाने पर भूखमरी की आधिकारिक पुष्टि हुई है।

भूखमरी का हाल बहुत डरावना है। इज़राइल धीरे-धीरे दो मिलियन से ज्यादा लोगों को खाना देने से रोक रहा है। करीब आधे मिलियन फिलिस्तीनी बहुत ज्यादा भूख से जूझ रहे हैं, और कम से कम 1,32,000 बच्चे, जो पांच साल से छोटे हैं, गंभीर कुपोषण की वजह से मरने के खतरे में हैं। हारेत्ज़ अखबार ने हाल ही में “Starvation is Everywhere” नाम का लेख छापा, जिसमें इस स्थिति की पूरी जानकारी दी गई है। जो लोग किसी तरह खाना लेने की जगह तक पहुँच पाते हैं उन्हें इज़राइली सेना अक्सर गोली मारती है।

इज़राइल में अमेरिका के एक पूर्व राजदूत ने हाल ही में बताया, आबादी को भूखा मारने की मंशा शुरू से ही रही है। इज़राइल के विरासत मंत्री अमीचाई एलियाहू ने हाल ही में घोषणा की, “ऐसा कोई देश नहीं है जो अपने दुश्मनों को खाना खिलाता हो।” मंत्री बेज़लेल स्मोट्रिच ने भी हाल ही में कहा, “जो लोग खाली नहीं होते, उन्हें खाली न करने दें। न पानी, न बिजली; वे भूख से मर सकते हैं या आत्मसमर्पण कर सकते हैं। यही हम चाहते हैं।”

फिर भी इन स्पष्ट नरसंहार की घोषणाओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी प्रतिनिधि बार-बार तथ्यों से इनकार करते हैं और इज़राइल के युद्ध अपराधों को छिपाते हैं। अकेले अमेरिका ने 2024 में फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने से रोक दिया। अब यह सितंबर में फिलिस्तीनी नेताओं को संयुक्त राष्ट्र जाने के लिए वीज़ा देने से भी इनकार कर रहा है जो अंतरराष्ट्रीय कानून का एक और उल्लंघन है।

अमेरिका ने अपनी शक्ति, खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में वीटो का इस्तेमाल, फिलिस्तीनियों पर इज़राइल के नरसंहार को बढ़ावा देने और सबसे बुनियादी मानवीय मदद तक को रोकने के लिए किया है। दुनिया हैरान है लेकिन इज़राइल-अमेरिका की हत्या मशीन के सामने जमी हुई सी लगती है। फिर भी दुनिया कार्रवाई कर सकती है, चाहे अमेरिका कितनी भी जिद करे। अमेरिका इज़राइल के साथ अपने आपराधिक मिलावट में अकेला और बेनकाब हो जाएगा।

साफ़ तौर पर कहें तो, मानवता की ज़्यादातर आवाज़ फिलिस्तीन के लोगों के साथ है। पिछले दिसंबर में, 172 देशों ने, जिनकी आबादी दुनिया की 90 प्रतिशत से ज्यादा है, फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया। इज़राइल और अमेरिका अपने विरोध में लगभग अकेले रह गए। इसी तरह के बड़े बहुमत बार-बार फिलिस्तीन के पक्ष में और इज़राइल की कार्रवाइयों के खिलाफ व्यक्त होते रहते हैं।

इज़राइल की यह गुंडागर्दी करने वाली सरकार अब सिर्फ़ अमेरिकी समर्थन पर निर्भर है लेकिन यह समर्थन भी लंबे समय तक नहीं रह सकता। ट्रम्प की जिद और अमेरिकी सरकार के प्रयासों के बावजूद, 58 प्रतिशत अमेरिकी चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता दे, जबकि केवल 33 प्रतिशत इसके खिलाफ हैं। इसके अलावा, 60 प्रतिशत अमेरिकी गाज़ा में इज़राइल की कार्रवाइयों के विरोध में हैं।

कुछ व्यावहारिक कदम जो दुनिया उठा सकती है:

पहला: तुर्की ने सही दिशा अपनाई है, उसने इज़राइल के साथ सभी आर्थिक, व्यापारिक, शिपिंग और हवाई कनेक्शन बंद कर दिए हैं। इज़राइल फिलहाल एक कट्टर राष्ट्र (rogue state) है, और तुर्की सही है कि इसे ऐसे ही माने, जब तक इज़राइल द्वारा बनाई गई बड़े पैमाने की भूखमरी खत्म नहीं होती और फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में 194वें सदस्य के रूप में मान्यता नहीं मिलती, उसके सीमाओं के साथ 4 जून, 1967 के अनुसार। अन्य देशों को तुरंत तुर्की का अनुसरण करना चाहिए।

दूसरा: सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों को, जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है, फिलिस्तीन को एक राज्य के रूप में मान्यता देनी चाहिए। अब तक 147 देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दी है। और दर्जनों देशों को 22 सितंबर को फिलिस्तीन पर होने वाले संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में ऐसा करना चाहिए, भले ही अमेरिका इसका जोर-शोर से विरोध करे।

तीसरा: अब्राहम समझौते के अरब हस्ताक्षरकर्ता – बहरीन, मोरक्को, सूडान और संयुक्त अरब अमीरात – को अपनी कूटनीतिक संबंध इज़राइल के साथ तब तक रोकने चाहिए जब तक गाज़ा की घेराबंदी खत्म नहीं होती और फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में मान्यता नहीं मिलती।

चौथा: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) को, उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के मत से इज़राइल को महासभा से निलंबित कर देना चाहिए जब तक कि वह गाज़ा पर अपनी घातक घेराबंदी नहीं हटाता। यह दक्षिण अफ्रीका के अपार्थाइड शासन के दौरान निलंबन के उदाहरण पर आधारित होना चाहिए। महासभा में अमेरिका का वीटो नहीं है।

पाँचवाँ: संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों को सभी तकनीकी सेवाओं का निर्यात रोक देना चाहिए जो युद्ध में मदद करती हैं जब तक गाज़ा की घेराबंदी समाप्त नहीं होती और फिलिस्तीन की सदस्यता UNSC द्वारा अपनाई नहीं जाती। अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट जैसे उपभोक्ता कंपनियों को, जो नरसंहार के संदर्भ में इज़राइली सेना की मदद करना जारी रखती हैं, दुनिया भर के उपभोक्ताओं के विरोध का सामना करना चाहिए।

छठा: UNGA को गाज़ा और कब्जे वाले वेस्ट बैंक में एक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा बल भेजना चाहिए। आम तौर पर सुरक्षा बल का आदेश UNSC देता है, लेकिन इस मामले में अमेरिका अपने वीटो का इस्तेमाल करके परिषद को रोक देगा। इसके लिए एक और रास्ता भी है।

“यूनाइटिंग फॉर पीस” (Uniting for Peace) तंत्र के तहत जब UNSC गतिरोध में फंस जाता है, तो कार्रवाई की शक्ति UNGA को दे दी जाती है। एक UNSC सत्र के बाद और लगभग निश्चित अमेरिकी वीटो के बावजूद, यह मुद्दा इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर 10वें आपातकालीन विशेष सत्र में UNGA के सामने लाया जाएगा। वहाँ, UNGA, अमेरिकी वीटो के बिना दो-तिहाई बहुमत से फिलिस्तीन के राज्य द्वारा की गई तत्काल अनुरोध पर सुरक्षा बल को अधिकृत कर सकता है। इसका एक उदाहरण भी है: 1956 में, UNGA ने UN आपातकालीन बल (UNEF) को मिस्र में प्रवेश करने और इज़राइल, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम द्वारा जारी आक्रमण से सुरक्षा देने की अनुमति दी थी।

फिलिस्तीन के निमंत्रण पर सुरक्षा बल गाज़ा में प्रवेश करेगा और भूखे लोगों के लिए आपातकालीन मानवीय सहायता सुरक्षित करेगा। यदि इज़राइल UN सुरक्षा बल पर हमला करता है, तो यह बल खुद को और गाज़ा के फिलिस्तीनियों की रक्षा करने के लिए अधिकृत होगा। यह देखना बाकी है कि क्या इज़राइल और अमेरिका, UNGA द्वारा अधिकृत इस बल के खिलाफ लड़ने की हिम्मत करेंगे, जो भूखे फिलिस्तीनियों की रक्षा कर रहा है।

इज़राइल ने सबसे घिनौने अपराधों की सीमा पार कर ली है – नागरिकों को भूखा रखकर मारना और उन्हें गोली मार देना, जब वे भोजन के लिए कतार में खड़े हों। पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब पूरी तारीख में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी के साथ कदम उठाने की जरूरत है।

 

(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और ज़रूरी नहीं कि ये क़लम टाइम्स की संपादकीय नीति को दर्शाते हों)

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