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Homeराष्ट्रीयनैरेटिव पर धनखड़ का तीखा संकेत—“चक्रव्यूह में फँसना आसान, निकलना मुश्किल”

नैरेटिव पर धनखड़ का तीखा संकेत—“चक्रव्यूह में फँसना आसान, निकलना मुश्किल”

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नैरेटिव के चक्रव्यूह पर बड़ा बयान देते हुए संकेत दिया कि कैसे एक सुनियोजित नैरेटिव ने उन्हें राजनीतिक तौर पर घेरा। क़लम टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क की खास रिपोर्ट।

क़लम टाइम्स न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली | 22 नवंबर 2025

 

इस्तीफे के महीनों बाद आया बड़ा बयान

नैरेटिवधनखड़ ने अपनी पहली ही पंक्ति में यही शब्द उठाया और चेतावनी दी कि “अगर कोई नैरेटिव के जाल में फँस गया तो बाहर निकलना आसान नहीं होता।” भोपाल में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में वे चार महीने की खामोशी तोड़ते दिखे। उन्होंने कहा कि वे अपना हाल नहीं सुना रहे, पर संदेश साफ था—इशारा उन्हीं की ओर था।

सार्वजनिक मंच पर लौटे, और लहज़े में पुरानी तल्ख़ी

उन्होंने शुरुआत में यह भी कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद बोलते हुए झिझक नहीं होनी चाहिए। इसी दौरान उन्होंने दोबारा नैरेटिव शब्द का ज़िक्र किया और कहा कि कई बार यह ऐसी कड़ी बन जाता है जिसमें फँसने वाला खुद भी समझ नहीं पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है।

धनखड़ का निशाना किस ओर था?

धनखड़ ने किसी का नाम नहीं लिया, मगर यह समझना मुश्किल नहीं कि उनकी नाराज़गी किस दिशा में बह रही थी। जुलाई 2025 में दिए गए इस्तीफे को उन्होंने “स्वास्थ्य कारणों” से जोड़ा था, जबकि राजनीतिक हलकों में मान लिया गया था कि मामला इससे कहीं गहरा है। प्रधानमंत्री कार्यालय और पार्टी नेतृत्व से उनकी दूरियाँ किसी से छिपी नहीं थीं।

संघ से रिश्ते और दिल्ली की बेचैनी

धनखड़ का संघ से लंबा जुड़ाव रहा। इसी पृष्ठभूमि की वजह से उन्हें 2022 में देश का उपराष्ट्रपति बनाया गया। शुरुआत में उनका रुख़ पूरी तरह सरकार के साथ था, लेकिन 2024 के बाद ढंग बदला। वे कुछ मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखने लगे, मंत्रियों को भी सार्वजनिक मंचों पर टोकने लगे। यही वह मोड़ था जहाँ से दिल्ली की बेचैनी शुरू हुई।

इस्तीफे से पहले मिला अल्टीमेटम?

दिल्ली के गलियारों में तब यह चर्चा तेज थी कि उन्हें संकेत दिया गया था—“खुद हट जाओ, वरना अपमान झेलने को तैयार रहो।” इसके बाद आया अचानक इस्तीफा, बिना विदाई संदेश, बिना आखिरी सत्र में मौजूदगी। और फिर चार महीने की खामोशी।

अब आगे क्या?

भोपाल में दिखे उनके तेवर बता रहे हैं कि वे चुप रहने वालों में नहीं। संघ से उनकी पुरानी समीपता एक बार फिर सक्रिय हो सकती है, और 2027 के चुनावी मैदान में हरियाणा या राजस्थान में उनका नया राजनीतिक अवतार दिख सकता है।
लेकिन अभी उनका संदेश साफ है—उन्हें जिस नैरेटिव के चक्रव्यूह में घेरा गया, वह उसे पहचानते हैं… और अब जवाब देने के लिए तैयार भी।

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