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वोट का बहिष्कार और वोटिंग की लंबी कतारें — EVM ख़राब, दिव्यांगों को नहीं मिली सुविधा

बिहार चुनाव 2025: पहले चरण में वोट का बहिष्कार, EVM खराबी और दिव्यांगों को सुविधा न मिलने की शिकायतें। कई जिलों में मतदाताओं ने “रोड नहीं तो वोट नहीं” का नारा लगाया, तो कई जगह तकनीकी खराबियों से मतदान रुका।

Qalam Times News Network

पटना, 6 नवम्बर 2025

लोकतंत्र का उत्सव या सिस्टम की परीक्षा?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग ने दो तस्वीरें दिखाईं — एक ओर लोकतंत्र का उत्सव, लंबी कतारें और जनता का जोश, तो दूसरी ओर वोट का बहिष्कार, EVM की खराबी और दिव्यांग मतदाताओं की अनदेखी।
गुरुवार को राज्य के 18 जिलों की 121 सीटों पर मतदान हुआ। सुबह से मतदाताओं का उत्साह देखने लायक था, लेकिन कई इलाकों में व्यवस्था की खामियों ने इस जोश पर ठंडा पानी डाल दिया।

मतदाताओं ने किया बहिष्कार — “रोड नहीं तो वोट नहीं”

पटना, दरभंगा और मुजफ्फरपुर जिलों में कई जगहों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया।

  • सोनवर्षा विधानसभा के जमालनगर में ग्रामीणों ने विकास कार्यों की अनदेखी के खिलाफ वोट न देने का फैसला लिया।
  • दरभंगा के कुशेश्वरस्थान में सुघराईन गांव के लोगों ने सड़क न बनने पर “रोड नहीं तो वोट नहीं” का नारा लगाया।
    प्रशासन के तमाम प्रयासों — CO गोपाल पासवान, BDO प्रभा शंकर मिश्रा और BPM अन्नू कुमारी के समझाने और पुलिस के फ्लैग मार्च के बावजूद ग्रामीण मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंचे।

मुजफ्फरपुर के गायघाट विधानसभा के तीन बूथों (161, 162, 170) पर भी पुल और सड़क निर्माण में देरी को लेकर ग्रामीणों ने वोटिंग से दूरी बनाई।
इन घटनाओं ने यह साफ़ कर दिया कि जनता अब केवल वादों से नहीं, जमीनी विकास से जवाब चाहती है।

EVM खराब — कतारें थमीं, नाराज़गी बढ़ी

कई जिलों में EVM मशीनें वोटिंग शुरू होते ही जवाब दे गईं।

  • दानापुर के बूथ 196 और बख्तियारपुर के बूथ 316 पर मशीन खराब होने से मतदान घंटों रुका रहा।
  • तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर में भी एक बूथ पर EVM ठप पड़ने से मतदान रोकना पड़ा।
  • मधेपुरा के कई मतदान केंद्रों पर भी तकनीकी गड़बड़ियों से प्रक्रिया देर से शुरू हुई।

तकनीकी दलों ने कुछ घंटों में मशीनें दुरुस्त कर दीं, लेकिन मतदाताओं में नाराज़गी और अविश्वास दोनों दिखा।

चुनावी घटनाएं और हलचल

वोट

पटना के फतुहा विधानसभा क्षेत्र में हाजीपुर गांव के बूथ 254 पर पीठासीन अधिकारी राजेश की तबीयत मतदान के दौरान बिगड़ गई। उन्हें तत्काल स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां उनका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ पाया गया।

बिहार शरीफ में बीजेपी के चार कार्यकर्ताओं को पर्चियां बांटने के आरोप में पुलिस ने हिरासत में लिया। इस घटना से RJD और BJP कार्यकर्ताओं के बीच तनाव बढ़ गया।
वहीं पटना साहिब सीट पर विधानसभा अध्यक्ष और बीजेपी विधायक नंदकिशोर यादव की मतदानकर्मियों से नोकझोंक भी चर्चा में रही — जब अधिकारी ने वोटर कार्ड दिखाने को कहा, तो यादव ने “विधानसभा स्पीकर ID” दिखाया, लेकिन नियमों के मुताबिक उन्हें वोटर कार्ड ही देना पड़ा।

दिव्यांग मतदाताओं की अनदेखी

नालंदा जिले के हिलसा विधानसभा क्षेत्र में बूथ नंबर 297 और 298 पर दिव्यांग मतदाताओं को व्हीलचेयर और अन्य बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलीं।
चुनाव आयोग के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद यह लापरवाही प्रशासनिक असंवेदनशीलता को उजागर करती है।
कई दिव्यांग मतदाताओं ने कहा कि उन्हें लाइन में खड़े रहकर घंटों इंतजार करना पड़ा — “लोकतंत्र सबका है, लेकिन सुविधा कुछ को ही।”

लोकतंत्र का भरोसा कायम, पर सवाल भी बचे

तकनीकी गड़बड़ियों और बहिष्कार के बावजूद पहले चरण में 60% से अधिक मतदान दर्ज किया गया। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही।
लेकिन EVM खराबी, दिव्यांगों की तकलीफ़ और ग्रामीण नाराज़गी जैसे सवालों ने यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या चुनावी मशीनरी उतनी संवेदनशील और भरोसेमंद है जितनी लोकतंत्र को चाहिए।

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