घाटशिला उपचुनाव में कुल 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनमें 9 पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं। मुख्य मुकाबला झामुमो के सोमेश चंद्र सोरेन और भाजपा के बाबूलाल सोरेन के बीच है। जानिए पूरी रिपोर्ट घाटशिला उपचुनाव की।
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Qalam Times Correspondent | घाटशिला, 3 नवंबर 2025
घाटशिला उपचुनाव ने झारखंड की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। कुल 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनमें से 9 पहली बार राजनीति की पारी शुरू कर रहे हैं। मुकाबला इस बार दिलचस्प हो चला है क्योंकि मैदान में नए चेहरों की मौजूदगी ने समीकरण बदल दिए हैं। सत्तारूढ़ झामुमो के उम्मीदवार सोमेश चंद्र सोरेन और भाजपा के बाबूलाल सोरेन के बीच सीधा टक्कर माना जा रहा है।

एक तरफ घाटशिला उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) अपने दिवंगत नेता रामदास सोरेन की विरासत पर भरोसा जता रही है, वहीं भाजपा संगठन की ताकत और मोदी सरकार की योजनाओं के दम पर जनता को आकर्षित करने में जुटी है।
झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा (JLM) भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में है। पार्टी ने रामदास मुर्मू को उम्मीदवार बनाया है, जो आदिवासी मतों को साधने में लगे हैं। इसके अलावा भारत आदिवासी पार्टी के पंचानन सोरेन और पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया (डेमोक्रेटिक) की पार्वती हांसदा जैसे कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं।
नए चेहरों की लहर

इस बार घाटशिला उपचुनाव में 70% यानी 9 प्रत्याशी ऐसे हैं जो पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों में सामाजिक कार्यकर्ता या जनसेवक के रूप में जाने जाते हैं। जनता के बीच ये उम्मीदवार खुद को स्थानीय मुद्दों और विकास के नए एजेंडे पर मजबूत विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। नए चेहरों की वजह से मतों का बिखराव तय माना जा रहा है, जिससे दोनों प्रमुख दलों — झामुमो और भाजपा — के लिए चुनौती बढ़ सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल मुकाबला झामुमो के सोमेश चंद्र सोरेन और भाजपा के बाबूलाल सोरेन के बीच सीधा है। झारखंड लोकतांत्रिक मोर्चा ने प्रत्याशी उतारकर इस लड़ाई को त्रिकोणीय जरूर बना दिया है, लेकिन अंतिम फैसला जनता के हाथ में है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि घाटशिला की जनता परंपरा तोड़ती है या पुराने दिग्गजों पर ही भरोसा जताती है।
आगामी घाटशिला उपचुनाव झारखंड की सियासी दिशा तय करेगा। यह चुनाव सिर्फ सीट का नहीं, बल्कि स्थानीय मुद्दों, विकास और राजनीतिक विरासत की साख का भी है।
अब पूरा झारखंड यह देखने को बेताब है कि घाटशिला किसे अपना नया प्रतिनिधि चुनता है — झामुमो की विरासत, भाजपा की ताकत, या नए चेहरों की उम्मीद?






