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सीमांचल बनेगा चुनावी संग्राम का केंद्र, एआईएमआईएम और जनसुराज से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ीं

सीमांचल में एआईएमआईएम और जनसुराज पार्टी के उभार से बिहार का चुनावी समीकरण बदल सकता है। ओवैसी और प्रशांत किशोर की रणनीति महागठबंधन और एनडीए दोनों के वोट बैंक पर असर डाल रही है।

By खुशरूद आलम पटना, 23 अक्टूबर 2025:

सीमांचल एक बार फिर बिहार की राजनीति का सबसे अहम मैदान बनता जा रहा है। यहां असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी, दोनों ही दल महागठबंधन के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं। धर्मनिरपेक्ष वोटों में बिखराव और नए राजनीतिक समीकरणों के चलते सीमांचल में मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।

एआईएमआईएम की रणनीति और सीमांचल की राजनीति

सीमांचल

हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार में 35 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 25 सीटें मुस्लिम बहुल हैं — और इनमें सीमांचल की 24 सीटें शामिल हैं। तेलंगाना में जहां ओवैसी की पार्टी केवल 7 से 9 सीटों पर चुनाव लड़ती है, वहीं बिहार में वह जज़्बाती और धार्मिक नारों के सहारे अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है।
ओवैसी पर आरोप है कि वे भावनात्मक नारों के ज़रिए गरीब और अशिक्षित मुसलमानों को अपने पक्ष में करते हैं, जबकि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष राजनीति कमजोर होती है।

राजद से गठबंधन न बनने के बाद एआईएमआईएम ने अकेले मैदान में उतरने का फैसला लिया, जिससे महागठबंधन के मुस्लिम-यादव समीकरण में सेंध लगने की आशंका बढ़ गई है।

जनसुराज पार्टी: सीमांचल में नई चुनौती

प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने पूरे बिहार की 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं और साफ कहा है कि वे मौजूदा सत्ता को जड़ से उखाड़ फेकेंगे। सीमांचल में भी पार्टी ने कई सीटों पर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है।
हालांकि पार्टी के तीन उम्मीदवारों को दबाव के चलते नामांकन वापस लेना पड़ा, पर प्रशांत किशोर का दावा है कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है और उनकी लड़ाई “जन की सरकार” बनाने की है।

जनसुराज ने जातिगत राजनीति से हटकर सुशासन, शिक्षा, रोजगार और भ्रष्टाचार मुक्त बिहार को अपना मूल एजेंडा बनाया है। यह वही मुद्दे हैं जो अब तक बिहार की राजनीति में अक्सर पीछे छूट जाते थे।

राजनीतिक असर और संभावित समीकरण

  • सीमांचल अब बिहार का चुनावी तापमान तय करेगा।
  • एआईएमआईएम मुस्लिम वोटों को महागठबंधन से खींच सकती है।
  • जनसुराज एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती बन रही है।
  • वोटों का बिखराव साम्प्रदायिक ताकतों को अप्रत्यक्ष लाभ दे सकता है।
  • छोटे दलों की भूमिका इस बार निर्णायक हो सकती है।
सीमांचल में निर्णायक मोड़

बिहार के राजनीतिक इतिहास में सीमांचल हमेशा से सत्ता की कुंजी रहा है। इस बार ओवैसी और प्रशांत किशोर — दोनों ही इस क्षेत्र में नई कहानी लिखने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी भावनात्मक राजनीति के ज़रिए अपने आधार को मज़बूत करना चाहते हैं, जबकि प्रशांत किशोर इसे विकास और सुशासन की प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं।
महागठबंधन के लिए यह डबल चुनौती है — एक तरफ धार्मिक ध्रुवीकरण, दूसरी तरफ विकास का नया एजेंडा।

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