बिहार NDA सीट बंटवारा 2025 में भाजपा-जेडीयू के बीच खींचतान, लोजपा को 29 सीटें मिलने से बढ़ा सियासी तनाव। सोनबरसा, राजगीर, मोरवा पर बगावत के सुर।
Qalam Times News Network
पटना, 14 अक्टूबर 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के भीतर सीट बंटवारे का सियासी ड्रामा अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गया है। शुरुआत में बीजेपी और जेडीयू के बीच 101-101 सीटों का बंटवारा तय हुआ, लेकिन लोजपा-रामविलास को 29 सीटें मिलने के बाद समीकरण पूरी तरह बिगड़ गए। सोनबरसा, राजगीर और मोरवा जैसी परंपरागत जेडीयू सीटों को लोजपा के खाते में जाने से नीतीश कैंप में गुस्सा और बगावत के सुर तेज हुए। वहीं बीजेपी के खाते में जेडीयू की पुरानी सीटें आने से अंदरूनी तनातनी बढ़ गई। छोटे घटक दल हम और रालोमो को केवल 6-6 सीटें मिलने से एनडीए के भीतर असंतुलन और नाराजगी साफ झलक रही है।
एनडीए के बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सीट बंटवारे का पूरा ड्रामा शुरू से अंत तक सीटवार घटनाक्रम के जरिए लगातार आगे बढ़ता रहा। सबसे पहले बीजेपी और जेडीयू में बराबर-बराबर 101-101 सीटों का बंटवारा तय हुआ। यह स्थिति जेडीयू के लिए बड़े झटके की तरह थी, क्योंकि पिछली बार उसे ज्यादा सीटें मिली थीं। जेडीयू कार्यकर्ताओं-नेताओं में अंदरूनी गुस्सा पनपता रहा कि उनकी पार्टी की ताकत कम कर दी गई है और भाजपा ने ‘बड़े भाई’ का दर्जा उनसे छीन लिया।

इसके बाद, चिराग पासवान की लोजपा-रामविलास को कुल 29 सीटें मिलीं, लेकिन यहां सबसे बड़ा विवाद तीन महत्वपूर्ण सीटों—सोनबरसा, राजगीर और मोरवा—को लेकर हुआ। ये सीटें पारंपरिक तौर पर जेडीयू के पास थीं, इस बार लोजपा को दे दी गईं। सोनबरसा पर जेडीयू के मंत्री रत्नेश सदा का टिकट केंद्र में था, जिसे हटाकर लोजपा को उम्मीदवार देने के फैसले पर पूरी जेडीयू में हड़कंप मच गया, नाराजगी प्रेस कॉन्फ्रेंस तक पहुंच गई। ऐसे ही राजगीर और मोरवा सीटों पर भी जेडीयू का आधार रहा है, पर इन्हें भी चिराग पासवान की पार्टी को देने से बगावत का माहौल फैल गया।
बीजेपी के खाते में लंबे समय बाद कुछ जेडीयू की पारंपरिक सीटें आ गईं, जिससे सम्राट चौधरी को तारापुर जैसे क्षेत्रों में टिकट देने को लेकर खींचतान शुरू हो गई। यहां नीतीश कुमार ने कड़ा विरोध जताया। छोटे घटक दलों—हम और रालोमो को मात्र 6-6 सीटें मिलीं। उनके नेताओं के बयान गुस्से और नाराजगी से भरे रहे, जिससे इतना साफ हो गया कि एनडीए में भीतरखाने संतुलन टूट रहा है, सूक्ष्म स्तर पर बगावत और खुद को हाशिये पर देखने का दर्द दलों में गहराता गया।
पूरा ड्रामा इसी तरह सीटवार विवाद, टिकट कटने, नेताओं की नाराजगी, प्रेस कांफ्रेंस की रद्दी, सोशल मीडिया पर बयानबाजी और रणनीतिक एलान के साथ आगे बढ़ा। भाजपा ने चिराग पासवान को प्रमुख भूमिका देकर अपने पाले को मजबूत किया, जबकि जेडीयू अपना जनाधार और सम्मान बचाने में लगी रही। छोटे दलों ने अंत में गठबंधन की एकता पर सवाल उठा दिए। यह पूरा घटनाक्रम एनडीए के ताकत-संतुलन, भविष्य की रणनीति और आपसी रिश्तों को गहराई से प्रभावित करता रहा, और हर बड़ी सीट पर खींचतान-नाराजगी इस ड्रामे का असली चेहरा बनी।
फिलहाल बिहार एनडीए ने सभी 243 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी और पार्टी वितरण की पूरी लिस्ट सार्वजनिक नहीं की है। लेकिन सीटवार मुख्य घटनाक्रम, जिन सीटों पर खासा विवाद, नोकझोंक और राजनीतिक ड्रामा हुआ, उनकी विस्तार से चर्चा इस प्रकार है:
- तारापुर
यह सीट भाजपा के खाते में गई और सम्राट चौधरी को प्रत्याशी बनाया गया। तारापुर सीट पुराने समय से जेडीयू की मजबूत सीट रही है, लेकिन इस बार यह भाजपा को दी गई, जिससे जेडीयू नेताओं में भारी नाराजगी दिखी।
- लखीसराय
यह सीट भाजपा के पूर्व डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के नाम घोषित होते ही पार्टी में संतोष का माहौल दिखा, लेकिन सहयोगी जेडीयू इस बड़े चिह्न वाली सीट के छिनने से असंतुष्ट रही।
- सीवान
भाजपा के वरिष्ठ नेता मंगल पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा गया। यहां पुराने गुटबाजी का असर देखा गया, और जेडीयू से कुछ नेता इस फैसले से असहमत बताए गए।
- कटिहार
भाजपा की तरफ से पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद को प्रत्याशी बनाया गया, जिससे कटिहार जेडीयू-बीजेपी के बीच पुराना दबदबा सवालों के घेरे में आ गया।
- सोनबरसा
यह सीट लोजपा-रामविलास को दी गई, जबकि परंपरागत जेडीयू नेता रत्नेश सदा का टिकट काट दिया गया। इसी मामले से जेडीयू के भीतर असंतोष सरगर्म रहा और यहां से असली बगावत के सुर फूटे।
- राजगीर और मोरवा
दोनों चर्चित और परंपरागत जेडीयू सीटें भी लोजपा-रामविलास के खाते में चली गईं। इन सीटों पर टिकट न मिलने से जेडीयू के कार्यकर्ता आहत हुए और रणनीतिक बैठकें करनी पड़ीं।
- हम और रालोमो के हिस्से
छोटे घटक दल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को मात्र 6-6 सीटें ही मिलीं। ये सीटें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में फैली हैं, लेकिन कई दिग्गज नेता अपने इलाकों से वंचित हो गए, जिससे नाराजगी और विद्रोह के सुर गूंजने लगे।
- अन्य शहरी/ग्रामीण संवेदनशील सीटें
अभी सभी नाम सार्वजनिक नहीं हुए हैं, लेकिन जहां-जहां सीटों का ट्रांसफर हुआ—यानी जहां परंपरागत सीट किसी अन्य घटक दल को गई—वहां विरोध, मतभेद और बगावत का माहौल बना रहा।
233 सीटों की सूक्ष्म जानकारी जैसे-जैसे घटक दलों की लिस्टें एक-एक करके सार्वजनिक होती जाएंगी, हर सीट पर समीकरण और ड्रामे के विस्तृत विवरण सामने आते जाएंगे। अब तक जिन सीटों को लेकर गठबंधन का सबसे बड़ा ड्रामा उभरा, वे ऊपर दर्ज हैं—इन पर उम्मीदवारों का चयन, छीना-झपटी और दल-बदल का असर सबसे गहरा रहा।
अगर आपको किसी विशेष सीट या क्षेत्र के लिए पूरा घटनाक्रम चाहिए, तो उस सीट/इलाके का नाम दें।हर सीट का पूरा ड्रामा, जैसा कि उपलब्ध जानकारी से सामने आया है, इस प्रकार है—
तारापुर:
ये सीट इस बार भाजपा के सम्राट चौधरी के खाते में गई। जब यह परंपरागत जेडीयू सीट भाजपा को मिली तो जेडीयू कार्यकर्ताओं में नाराजगी की लहर दौड़ गई। यहाँ से जेडीयू का मजबूत कैडर भाजपा के इस फैसले से असहमत है।
लखीसराय:
बीजेपी ने अपने वरिष्ठ नेता विजय सिन्हा को उम्मीदवार बनाया, जिससे बीजेपी समर्थकों में उत्साह है, लेकिन जेडीयू के पुराने नेताओं को यह सीट गंवाना अखर गया, क्योंकि पहले यह सीट उनके हिस्से में आती थी।
सीवान:
मंगल पांडेय को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया। इस पर भी अंतर्गत गुटबाजी रही—जेडीयू गुट के कुछ नेता नाराज बताए गए।
कटिहार:
यहां भाजपा ने पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद को उतारा। कटिहार आमतौर पर जेडीयू-बीजेपी की साझेदारी का उदाहरण थी, पर अब औपचारिक रूप से भाजपा के पास गई।
सोनबरसा:
लोजपा-रामविलास के खाते में ये सीट गई, जबकि जेडीयू ने यहां के मजबूत नेता रत्नेश सदा का टिकट कटने के बाद विरोध जताया। इसी सीट से जेडीयू में नाराजगी और भीतरघात का सबसे ज्यादा असर रहा।
राजगीर, मोरवा:
दोनों परंपरागत जेडीयू सीटें लोजपा के पास जाने से जेडीयू में असंतोष दिखा — यहां बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बैठकें कीं और सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज किया।
हम, रालोमो के हिस्से:
छह-छह सीटें मिलने से इन दलों के दिग्गज नेता नाराज और हाशिये पर महसूस करते रहे। कई जगह कार्यकर्ता बगावत की सोचने लगे।
बाकी अधिकांश सीटें:
जिन इलाकों में उम्मीदवार का चेहरा, जातीय समीकरण या विकास कार्यों की वजह से किसी दूसरी पार्टी को मौका मिला, वहां भी अंदरूनी नकारात्मकता और विरोध तेजी से उभरा। जिनका नाम कटा वे बगावत पर उतर आए, जबकि सहयोगी पार्टियों के बीच समन्वय बैठाना लगातार चुनौती बना रहा।
एनडीए के भीतर पूर्ण सीटवार सूची अभी जारी नहीं हुई है, लेकिन जिन सीटों पर सबसे ज्यादा बड़ा ड्रामा या विवाद हुआ, उनका स्थायी असर उम्मीदवारों की व्यूह रचना और चुनावी समीकरण पर साफ दिखता है। अधिक डेटा स्पष्ट होने पर हर सीट का पूरा घटनाक्रम और नाम क्रमवार सामने आएगा।






