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बिहार में 1990 से ऐसे गिरता गया कांग्रेस का ग्राफ,2015 में लालु ने दिया था ऑक्सीजन

आंकड़ों के जरिए जानिएं पूरी कहानी
     
                     इन्तेजारूल हक की रिपोर्ट
बिहार- 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 196 सीटें जीती थी और सरकार बनाई थी. हालांकि 1985 से 1990 के बीच में कांग्रेस को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े थे. यानी 4 मुख्यमंत्री हुए .
                    बिहार में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता रहा
उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस दशकों से सत्ता से दूर है. इन राज्यों में बिहार भी शामिल है, जहां पर कांग्रेस आखिरी बार अपने दम पर 1985 में सत्ता में आई थी और सरकार बनायी थी.उस समय बिहार और झारखंड एक ही राज्य हुआ करते थे और विधानसभा सीटों की संख्या कुल 324 थी. 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने 196 सीटें जीत कर सरकार बनायी थी. हालांकि 1985 से 1990 के बीच में कांग्रेस को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। यानी 4 मुख्यमंत्री हुए
                         1990 में कांग्रेस बिहार की सत्ता से हुई बाहर
इसके बाद 1990 में विधानसभा चुनाव हआ. लालू यादव जनता दल के नेता थे. इस चुनाव में जनता दल को 122 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस को महज 71 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. इसके अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 23, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (M) को 6, जनता पार्टी को 3, सोशलिस्ट पार्टी को एक सीट पर जीत मिली. वहीं 30 निर्दलीय चुनाव जीते थे. वामपंथी दलों और निर्दलीयों के सहारे सरकार जनता दल की सरकार बन गई. इसके बाद मुख्यमंत्री पद के लिए जनता दल के अंदर वोटिंग हुई और लालू यादव इसमें विजयी हुए.इसके बाद लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनी.उस चुनाव में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, उसके बाद अपने दम पर सत्ता में कभी नहीं लौटी.
                        1995 जनता दल की चली सुनामी,कांग्रेस की हुई करारी हार
अब हम बात करते हैं 1995 के विधान सभा चुनाव का. 1995 के चुनाव में एक बार फिर से जनता दल की शानदार जीत हुई और कांग्रेस की करारी हार. जनता दल को पूर्ण बहुमत मिली और लालु यादव फिर से मुख्यमंत्री बने.कांग्रेस मात्र 28 सीटों पर सीमट गयी. हालांकि 1997 में चारा घोटाला विवाद के चलते उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा और रावड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं.पार्टी में टूट हो गयी और लालु यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के नाम से एक अलग पार्टी बना ली. जब लालु यादव जनता दल छोड़ कर आये तब उनके साथ 136 विधायकों का समर्थन था और कांग्रेस व झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन से आरजेडी की सरकार बना ली.राजद का समर्थन देने के कारण कांग्रेस सत्ता में तो आ गयी,लेकिन बिहार के नेता लालु यादव थे.कांग्रेस अब कमजोर हो गयी थी. वहीं कांग्रेस 1990 तक अपने दम पर बिहार की सत्ता में थी वहीं कांग्रेस पांच साल बाद मात्र 28 सीटों पर ही रह गयी थी.
                2000 के चुनाव में सीटों की संख्या घटकर कांग्रेस की 23 हो गयी.
वहीं साल 2000 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस का वोट बैंक व अपना जनाधार काफी खिसक गया था.कांग्रेस के सीटों की संख्या घटकर 23 हो गयी. यूं कहा जाए कि कांग्रेस का ग्राफ बिहार में पहले की अपेक्षा और कमजोर हो गया था. इस बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बनें.लेकिन मात्र सात दिनों के लिए ही. सात दिन बाद फिर से गठबंधन में दरार पड़ती है और रावड़ी देवी फिर से बिहार की मुख्यमंत्री बन जाती हैं. हालांकि 2005 का चुनाव आते आते विधान सभा चुनाव कई मायनों में अलग समीकरण व माहौल बदल गया. राजनीतिक समीकरण भी बदले और झारखंड के अलग राज्य बनने से सीटों की संख्या 243 हो गयी.
                             2005 में आरजेडी का हो गया सफाया
साल 2005 के चुनाव की बात करें तो आपको याद होगा कि इस चुनाव में राजद व कांग्रेस का सफाया होगा. जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और भाजपा को 55 सीटें मिले. दोनों ने मिलकर सरकार बनायी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस ने इस चुनाव में आरजेडी के साथ गठबंधन में 51 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसे मात्र 9 सीटों पर ही जीत मिली. अब इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जो कांग्रेस 15 साल पहले अपने दम पर अकेले सत्ता में थी वह महज 9 सीटों पर ही सिमट गयी. 1990 तक कांग्रेस के पास बिहार में 196 विधायक होते थे जो अब मात्र 9 हो गये.
                                  2010 में कांग्रेस पहुंची चार सीटों पर
कांग्रेस का ग्राफ कैसे लगातार गिरता जा रहा है आप 2010 के चुनाव को भी देख सकते हैं. मात्र चार सीटों पर ही जीत मिली.कांग्रेस लालु यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी.एनडीए गठबंधन 206 सीटों पर कब्जा जमा ली. वहीं राजद को 22 व कांग्रेस को मात्र चार सीटें मिली.
                                   2015 में कांग्रेस को लालु ने दिया ऑक्सीजन
2015 के विधान सभा चुनाव में केन्द्र की मोदी सरकार बन चुकी थी. बिहार में भी नया समीकरण बन गया था. नीतीश कुमार व लालु यादव एक साथ थे. कांग्रेस भी महागठबंधन का हिस्सा थी. इस विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार व लालु यादव की पार्टी 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. वहीं कांग्रेस को भी 42 सीटें दी गयी. इस 42 सीटों में से कांग्रेस 24 सीटें जीतने में कामयाब रही. यानी लंबे समय के बाद कांग्रेस की स्थिति में सुधार दिखी.
                      2020 तेजस्वी के अरमानों पर कांग्रेस ने फेर दिया था पानी
2020 के चुनाव का समय आते आते बिहार की सियासत में बहुत कुछ बदल गया था. सीएम नीतीश कुमार 2017 में महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ चले गये थे. मुकाबला सीधे एनडीए व महागठबंधन के बीच था. एनडीएम में सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जदयू व बेजीपी शामिल थी.वहीं महागठबंधन में राजद व कांग्रेस मुख्य पार्टी थी. महागठबंधन में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थी,लेकिन महज 19 सीटें ही जीत पायी. महागठबंधन में सबसे कम स्ट्राइक रेट कांग्रेस की रही. जानकार बताते हैं कि अगर कांग्रस 10 से 15 और सीटें जीत लेती तो तेजस्वी प्रसाद यादव सीएम बन जाते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
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